शनिवार, 26 दिसंबर 2009

निःशब्द ....

इस पुरे हफ्ते बहुत सी घटनाए घटित हुई.१९ साल की नींद की बात मीडिया भी जागा ,१९ साल तक एक प्रशासनिक अधिकारी हैवान बनकर एक परिवार को सताता रहा तब तक किसी की नज़र नहीं पड़ी पर जब सजा हुई तो पूरा भारत उनके साथ हो लिया.दुनिया भर के समाज सेवी संगठन उनके साथ हो लिए.जब वह डी.जी पी.बना तब भी किसी का उसकी तरफ ध्यान नहीं गया.इस प्रकरण मे राजनितिक संरक्षण भी सामने आ रहा है अब आने के बाद उस समय उस प्रदेश के सभी राजनीतिग्य शुरू हो गए है की इसमें हमारा कोई हाथ नहीं है,सभी इसमें अपनी राजनीति तलाश रहे है.यह प्रकरण हमारे ''पवित्र'' संविधान पर एक तमाचा है.अब इस प्रकरण को मीडिया ने सामने तो ला दिया पर कब तक मीडिया भी इस पर अपनी रील खर्च करेगा हम भारतीयों को तो नयापन चाहिए होता है थोड़े दिन इसका हल्ला होगा फिर धीरे धीरे कर यह सब शांत हो जाएगा और जब भी सुनवाई या सजा होगी तब ये जिन्न फिर बहार आ जायेगा.उस हैवान की मुस्कुराहट ने ही उसे डुबो दिया यदि वो सजा के बाद बाहर आकर न मुस्कुराता तो शायद इतना हंगामा न होता.
मेरी भगवान से यही प्रार्थना है की जो दुःख तनाव व पीड़ा गिरहोत्रा परिवार ने झेली है वो हैवान भी उसे झेले वो भो जेल मे,भगवान करे वह अपने आखरी दिनों मे जेल की काली कोठरी मे बंद अपना समय बिताये.यह भी दूर का एक सपना है क्योकि जो आदमी १९ साल तक किसी परिवार को वही के प्रशासन से परेशान कर सकता है तो जेल मे तो उसे घर से भी अच्छी सुविधा प्राप्त होगी.इस मामले मे मेरे हिसाब से उन पुलिस वालो का कोई दोष नहीं है जिन्होंने गिरहोत्रा परिवार को परेशान किया उन्होंने तो वही किया जो उनके मालिक ने कहा नहीं करते तो वो लोग भी अपनी जान से हाथ धो बैठते.
आशा है की अब इन्साफ देर से नहीं आएगाऔर उस हैवान को सजा भगवान की अदालत मे भी होगी
जय हिंद....

सोमवार, 14 दिसंबर 2009

हमारी भूमि

पहले अलग देश अब अलग राज्य बाद मे अलग जिला और उसके भी बाद मे अलग तहसील.शायद यही कहानी हमारे भारत की दिख रही है.भारत सरकार के जल्दबाजी मे लिए गए फैसले का परिणाम हमे भुगतना पढ़ रहा है या हो सकता है आगे भी भुगतना पड़ेगा.सभी दल जो राज्य की मांग कर रहे है वो अपनी अलग भूमि चाहते है या उनमे से कुछ है जो ये कह रहे है की बड़े राज्य की अपेक्षा छोटे राज्य ज्यादा तेज़ी से विकास करेंगे.इस कथन का जीता जागता उदाहरण है झारखण्ड, जहा कोड़ा के कारनामे बने और वो बहार आये.विकास की यदि बात करे तो छत्तीसगढ़ से अच्छा कोई उदाहरण नहीं है,सर्वाधिक नक्सल प्रभावित राज्य है,३ रूपये किलो चावल से मजदूर वर्ग मे निकम्मापन व कामचोरी मे बेतहाशा वृद्धि हुई है.
केंद्र सरकार द्वारा रात को लिया गया फैसला हमे और अन्धकार मे भेजते जा रहा है कई और राजनितिक पार्टिया अपनी मांग को लेकर भूख हड़ताल मे बैठने वाली है सभी को अपनी ज़मीं और अपना आसमान चाहिए वो ये नहीं सोचते की इससे कितना नुक्सान हो सकता है.कोई भी ये नहीं सोचता की हमारे देश का क्या होगा सब अपनी अपनी राजनितिक रोटिया सेक रहे है और आग हमारे दिलो पर लग रही है .रातो रात कोई फैसला नहीं होता यदि भूख हड़ताल ओदनी ही थी तो आश्वासन भी दिया जा सकता है जब जनता को हज़ारो आश्वासन देने के बाद भूल जाते है तो एक और सही थोड़े दिनों बाद यह सब ठंडा हो जाता और अगले लो.स, चुनाव के समय फिर भूसे मे चिंगारी फेक देते.छोटे राज्य कहने से ही मुझे वहा की पार्टियों की कुर्सी के प्रति आस्था नज़र आती है.कोई भी पार्टी अपने भाषण की शुरुआत विकास के लिए छोटा राज्य से नहीं करती.
सिर्फ छोटा राज्य होने से ही विकास नहीं होता वहा पर खुद के बल मे राज्य चलने की सम्भावना भी रहनी चाहिए.एक आग को लगाकर हमारी सरकार ने पूरा घर जलाने का काम किया है अब यह देखना रोचक होगा की उस आग मे कौन कौन बचता है और कौन जलता है
जय हिंद.....

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

''AWARDS FOR INDIAN OF THE YEAR..... !!!!''

वर्ष का अंत हो रहा है काफी कुछ उपलब्धि व बहुत कुछ नुक्सान के साथ ये वर्ष हमसे विदाई ले रहा है और इसी विदाई के साथ पुरस्कारों की शुरुआत भी हो गयी है आजकल मनोरंजन चेनलो के साथ साथ समाचार बेचने वालो ने भी पुरस्कार देना शुरू कर दिया है.इन लोगो के द्वारा किसी को पुरस्कार दिया जाए न दिय जाए परन्तु ''भारतीय सेना'' को ज़रूर पुरस्कार दिया जाता है क्या हमारी सेना पुरस्कार के लायक है?हमारी सेना इन सबसे ऊपर है उसे किसी पुरस्कार की आवश्यकता नहीं है.ज़बरदस्ती लोगो की भावनाओ के साथ खेलकर ये पुरस्कार वितरित किये जाते है और अछि खासी कमी भी हो जाती है कितने चेनल वाले ऐसे है जो इस कमाई को दान देते है.कई पुरस्कार तो सिर्फ लोगो को याद दिलने के लिए दिए जाते है और इन समारोहों मे हमारी सरकार के कई बड़े मंत्री उपस्थिति दर्ज करवाते है.मेरे राज्य के मुख्यमंत्री को भी एक चेनल वालो ने उम्मीदवार बनाया है उनको जितने के लिए यहाँ पर बाकायदा टी,वी. व रेडियो पर लोगो से एस एम एस करने की अपील की जा रही है इस अपील से चेनल वालो को कितना फायदा होगा ये तो सोचने की बात है.हमे ये कभी नहीं भूलना चाहिए की भारत का हर निवासी ''INDIAN OF THE YEAR'' है .ये हमारी भूल है की हम किसी एक व्यक्ति को ही चुनते है.
जय हिंद....

मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

चमचाई का नया नमूना

कल राहुल बाबा की चमचाई राहुल बाबा को ही महँगी पड़ गयी.उ.प्र. कांग्रेस प्रमुख का बयां देखकर तो मुझे काफी हँसी आई उन्होंने ने तो और चमचो की तरह चमचाई की यही पर यहाँ तो अपना चम्मच गले में उतर गया और कर गया पूरा गला खराब.कल राहुल गाँधी का दौरा आज उनके लिए बड़ा सिरदर्द लाया पायलट पर दबाव डालकर जबरन अँधेरे व झाड़ वाली जगह पर अपना हेलीकाप्टर उतरवाने का मामला तूल पकड़ गया वह भी उनके ही एक कम दिमाग नेता के कारण उनके शब्द तो उन्ही के लिए घातक साबित हो गए बहुगुणा जी ने सोचा की चमचई करके शायद केंद्र में स्थान मिल जाएगा पर अपना तीर तो अपने ही को लग गया पर राहुल बाबा के बयानों को देखकर तो लगता है की गलती न पायलट की थी और न ही उनकी ये तो रीता जी थी जिन्होंने गर्रिब व भोले लोगो के लिए दिए एक बयान मे कहा की''० विसिबिलिटी होते हुए भी जनता की किया गया वादा पूरा करने के लिए एक नेता ने पायलट को कहकर अपना हेलीकाप्टर उतरवा दिया'' अब इस चमचाई का रीता जी को क्या इनाम मिलता है ये देखना तो बहुत मजेदार रहेगा .
एक दिन यही चमचे कांग्रेस को ले डूबेगी और गांधी परिवार द्वारा कड़ी की गयी कांग्रेस उन्ही के ही लोगो द्वारा गिरा दी जायेगी.पहले भी गाँधी परिवार के कई सदस्यों ने पार्टी में आये है पर राहुल बाबा के नाम की जो चमचाई देखने को मिली वह तो अदभूत है गाँधी परिवार के किसी भी सदस्य को इतने चमचे नहीं मिले होंगे जितने की राहुल बाबा को.यदि जल्द ही इन चमचो को सजा नहीं दी गयी तो कांग्रेस की बरबादी को कोई नहीं रोक सकता
एक और बात जो मे बताना चाहता हु वो ये की मेरे राज्य मे निगम व पंचायत चुनाव हो रहे है.टिकट के लिए यहाँ की कांग्रेस मे रोज मारपीट हो रही है कल ही एक महिला अपनी दावेदारी को लेकर आत्महत्या तक करने की बात पर उतर आई. उसका आरोप था की वह अपने वार्ड की सही दावेदार है, उसने १.५ लिटर की बोतल मे मिटटी तेल लिया उसकी भी मात्रा भी लगभग उसके तल के आसपास थी थोडा सा मिट्टी तेल लेकर उसने आत्महत्या करने की बात कही, पर बाद मे मामला निपटा लिया गया और उसे टिकट भी नहीं मिला.छात्र राजनीति मे अक्सर एक नारा लगता जय''अभी तो ली अंगड़ाई है आगे बहुत लड़ाई है''यहाँ इस नारे का एक आधुनिकतम रूप सामने आया''अभी तो ली अंगड़ाई है कल परसों पिटाई है'' यह नारा भी कांग्रेसियों के तरफ से आया है .यहाँ कांग्रेस एक वार्ड से उम्मीदवार का नाम तय करते है और अगले ही दिन उसके ही विरोध में कांग्रेसी सैकड़ो कांग्रेसी आ जाते है. दावेदारी को लेकर कांग्रेस में बहुत मारामारी है आज ही जब में अपने कॉलेज से लौट रहा था तो देखा की कांग्रेस के वरिष्ट नेता ''स्व.पंडित श्यामाचरण शुक्ल'' के पुत्र ''अमितेश शुक्ल'' के घर दावेदारों की भीड़ थी मैंने कभी भी उनके घर का दरवाजा बंद नहीं देखा पर आज उनके घर का दरवाजा बंद था.भाजपा मे यह सब कम है यहाँ पर जो दावेदार तय होता है उसका विरोध कम जगह देखने को मिलता है या होता ही नहीं है.भाजपा ने अपनी सूचि दो दिन पहले जारी कर दी है पर कांग्रेस की सूचि का अत पता नहीं है.
भगवान बचाए ऐसे राजनीतिज्ञों से......
जय हिंद.......

सोमवार, 30 नवंबर 2009

श्रद्धांजली......

कल मैंने टी.वी. पर एक कार्यक्रम देखा.यह कार्यक्रम दिल्ली में हो रहा था.मुंबई मे मारे गए लोगो के लिए यह कार्यक्रम था जिसमे माया नगरी के कई लोग भी शामिल थे.इस कार्यक्रम को देखकर तो मुझे काफी लज्जा महसूस हुई कार्यक्रम में उपस्थित लोगो ने उन शहीदों और वहा मरे लोगो का मज़ाक उड़ाया.जब सानिया मिर्ज़ा आई तब वहा पर काफी हल्ला मच गया सानिया ने भी ''श्रधान्जली सभा'' में मुस्कुरा कर इसका जवाब दिया और फिर अपना भाषण एक अभिनय के रूप में प्रस्तुत किया.इसके पहले भी अम्बिका सोनी व शीला दीक्षित ने भी हसकर सभा का प्रारंभ किया.अब बारी थी ''किंग खान'' की,पहले तो रिहर्सल के समय हस कर सब किया पर जब बोलने की बारी आई तो एकदम गम्भीर तरीके से अपना पक्ष रखा उनका तो पेशा ही यही है.इनमेभी कुछ लोग थे जिन्होंने अपने आपको सही मायने में प्रस्तुत किया और उनको सुनकर ऐसा लगा की नहीं इन्हें आतंकी हमले से बहुत तकलीफ हुई है ये थे ''अभिनव बिंद्रा'' और इंडियन एक्सप्रेस के ग्रुप एडिटर मुझे इनका नाम याद नहीं आ रहा .ये वो लोग है जो प्रसिद्ध है और भि कई थे जिन्होंने वहा पर अपना दुःख ज़ाहिर किया.हालाकि मैंने ये कार्क्रम आधे घंटे तक ही देखा उसके बाद तो मेरा दिल बैठ गया मुझे ये समझ मे नहीं आया की मे एक श्रद्धांजली सभा में हु या एक ''कोंसर्ट'' में .में इन सभी की देश के प्रति भावना को लेकर आशंकित नहीं हु पर इनका रव्विया जो मुझे वहा दिखा उससे मुझे बहुत दुःख हुआ.वो एक ऐसी जगह थी जहा पर आप हसकर भी लोगो को एक होने का सन्देश दे सकते थे पर वहा तो सिर्फ अभिनय हुआ वो भी आधे घंटे में मैंने इतना देखा यदि पूरा देखता तो न जाने क्या क्या और दिखाई पड़ता .
इन हमलो के बाद हमने भी कोई कम पाप नहीं किये है.इन हमलो मे १९ रक्षाकर्मी की मृत्यु हुई थी उसमे भी हमने सिर्फ ४ या ५ को याद किया बाकी तो सब अनजान ही रह गए इसमें सबसे बड़ा हाथ ''मीडिया'' का है.इन्होने सिर्फ मुंबई पुलिस के बड़े अफसरों की शाहदत को सलाम किया और बाकी को भूल गये .और इनमे भी कई लोग ऐसे है जिन्होंने एक आम आदमी होते हुए भी अपनी जान की बाज़ी लगा दी और स्वर्गवासी हो गए.काश इन्हें भी हम याद कर लेते या इनकी कहानी भी हम जान लेते तो इनकी जान की कीमत वसूल हो जाती.
जय हिंद.....

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

समझ ....!!!

कल का दिन काला दिवस था इस दिवस को ''कवर'' करने के लिए भारत भर के समाचार चेनलो में युद्ध चिद गया था हमारी संवेदना दुसरे चेनलो से ज्यादा है ऐसादिखने मै कोई कोर कसार नहीं छोड़ी जैसे की मैंने पहले लिखा था की वायलिन की डरावनी आवाजों के साथ २१इन्च के टीवी पर बमुश्किल १०इन्च में कुछ देखते है उसमे भी उन १०इंच में कुछ न कुछ लिखा होता है पर हुआ इसका एकदम उलट इन्होने ने तो वायलिन की नर्म आवाजों के साथ लोगो को रोते हुए दिखाया और इनके साथ साथ उन लोगो की भावनाओ को भी रुलाया जो इन्हें देख रहे थे मैंने तो एस एम् एस के ज़रिये लोगो तक एक सन्देश प्रचारित कर दिया था की ऐसे किसी भी ''रिपोर्ट'' को न देखे ये सिर्फ भावनाओ के साथ खेलकर पैसा कमाना चाहते है अब जो मेरे दोस्तों ने किया वो मेरे दोस्त ही जाने.पर एक बाट की तसल्ली हो गयी की कम से कम समाचार चेनलो को ये तो समझ आया की लोग वायलिन कीडरावनी आवाज़ नहीं बल्कि नर्म आवाज़ लोग सुनना चाहते है.मुंबई हमलो को मीडिया कितने दिन याद रखता है या याद रखने देता है ये तो मीडिया ही जाने ज्यादा से ज्यादा ५ साल उसके बाद धीरे धीरे ये लोग इन हमलो के बारे में बताना कम कर देंगे और १० साल होते तक ये तो बंद ही हो जायेगा इसका एक जीता जागता उदाहरण है ९३ मुंबई धमाका.
कल का दिन तो सभी के लिए ''कुबेर के खजाने में नहाने'' का दिन था सभी समाचार चेनलो व् मोबाइल कम्पनियों ने जी भरकर पैसे कमाए होंगे लोगो की संवेदनाओ के साथ खेलकर धन कमाने का नया ''आईडिया'' है ये .में भी इसमें फस गया औए मैंने भी अपने दो दोस्तों को एस एम् एस कर दिया एक तो मेरे ही मोबाइल पर आया था और उसे मैंने ओने दोस्त को फोरवर्ड कर दिया तब मुझे समझ में आया की ये तो पूरा खेल है .पर मुझे लगता है की एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब हमारी मीडिया भी समझदार हो जाएगी और हम भी न्यूज़ देखेंगे न की बकवास.
जय हिंद....

बुधवार, 25 नवंबर 2009

कल पैसे कमाने और लोगो को फिर बुरी यादो में भेजने का दिन है.......

कल का दिन हमारे इतिहास का सबसे भयावह दिन है.हमारे लिए किसी काले दिवस से कम नही.अखबारों और टी.वी.चनलो के द्वरा किए गए नित नई खोजो से तो यही लगता है की गलती तो किसी की भी नही थी उन्होंने ही यहाँ आकर गलती कर दी.उनको तो सीधे जाना था दिल्ली वहा पर यदि हुआ होता तो अभी तक पाकिस्तान पर हमारा कब्ज़ा होता.ये तो थी जो हुआ होप्ता उसकी बातें पर जो हो गया है उसके बारे मई भी थोड़ा सा और जान लेते है.खबरों के अनुसार तात्कालिक गृहमंत्री ने मुंबई के बारे मई राज्य सरकार को ७ बार चेतावनी दी थी खुफिया विभाग ने ही करीब करीब इतनी ही बार चेतावनी दी थी पर राज्य सरकार ने इस पर कोई अमल नही किया .इस भूल की वजह से २०० क लगभग जाने गई ६० घंटे तक हम अपने ही घर में बंधक बने थे.हमारे प्रशासन का यह एक और निष्क्रिय चेहरा सामने आ गया और उसके बाद आरोपों का दौर शुरू हो गया अभी तो यह हल्ला काफ़ी दिनों तक चलेगा फिर धीरे धीरे हम इसे भिओ भूला देंगे .आख़िर हम कब तक ऐसे हमलो पर जवाब देते रहेब्गे और कब तक हम अपने सगे संबंधियों की जान गवाते रहेंगे और उससे भी भयानक कब तक हमारे नेता इस पर राजनीति करते रहेंगे अभी भी मुंबई में जहा भी हमले हुए वहा पर सुरक्षा का नामो निशान नही है पुलिस क अधिकारी बैठे तो रह्त्र है पर किसी संदिग्ध की तरफ़ उनका ध्यान नही रहता.पता नही कब तक हम ऐसे बेबस और लाचार रहेंगे। कल ही मैंने एक खबरिया चेनल पर पुलिस की हमलो के वक्त हुई बातो की रिकार्डिंग सुनी उसे सुन कर तो ऐसा लगा की जिस पुलिस को हम भारत की सबसे अच्छी पुलिस होने का दर्जा देते है वो यो नासमझो की पुलिस निकली कंट्रोल रूम में कोई व्यक्ति सही जानकारी नही दे रहा था और जब जानकारी मिली तो समझने वाले गलत समझे.
अब इन हमलो के होने के बाद जो खबरिया चेनलो ने दिखाया वो तो हद की भी हद हो गई २१इन्च के टी.वी। पर मुस्किल से १०इन्च साफ़ साफ़ दिख रहा रहा बाकी पुरा लिखा हुआ या बार बार दिखने वाले दृश्यों से भरा था. सभी तरफ़ से यही दिखाया की कैसे उन्होंने हमारे लोगो को मारा कैसे हमारे लोगो ने उन्हें मारा.अब यो जैसे उनके लिए पैसे कमाने का मौसम आ गया एस एम् एस से लोगो के मन को रुलाना और फिर उस्सी से पैसे कमाना २१इन्च के टी.वी। पर चारो ओर से तस्वीरों पर लिखना भयानक वायलिन की खतरनाक आवाज़े और एक खतरनाक या सहमी हुई आवाज़ के द्वारा पुरी घटना का वर्णन यही रह गया है खबरिया चनलो पर ये लोग क्यो नही समझते की इससे किसी का मानसिक सनुलन खो सकता है इन भयानक हमलो में जिन्होंने अपने लोगो को खोया है वो तो जीते जी ये सब देखकर मर जायेंगे. ये हमला हमारी हार था,इस हार ने हमारी कारगिल पर जीत को भुला दिया.आज तक किसी ने भी यह स्वीकार नही किया की ये हमारी गलती के कारण हुआ जब तक हममे स्वीकार की प्रवृत्ति नही आएगी हमपर हमले होते रहेंगे.
जय हिंद ....